वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा तो फिर ऐ संग-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो

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