सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का वो इक गुल-दस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का

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