भारतीय जनकवि का प्रणाम
गोर्की मखीम! श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम! घुल चुकी है तुम्हारी आशीष एशियाई माहौल में दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम । अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम । गोर्की मखीम! विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम! गोर्की मखीम! दर-असल'सर्वहारा-गल्प' का तुम्हीं से हुआ था श्रीगणेश निकला था वह आदि-काव्य तुम्हारी ही लेखनी की नोंक से जुझारू श्रमिकों के अभियान का... देखे उसी बुढ़िया ने पहले-पहल अपने आस-पास, नई पीढी के अन्दर विश्व क्रान्ति,विश्व शान्ति, विश्व कल्याण । 'मां' की प्रतिमा में तुम्ही ने तो भरे थे प्राण । गोर्की मखीम! विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम! गोर्की मखीम!

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