भूले स्वाद बेर के
सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपन खा बचन बिसर गए गए देर के सबेर के ! बन गया साहूकार लंकापति विभीषण पा गए अभयदान शावक कुबेर के ! जी उठा दसकंधर, स्तब्ध हुए मुनिगण हावी हुआ स्वर्थामरिग कंधों पर शेर के ! बुढ्भंस की लीला है, काम के रहे न राम शबरी न याद रही, भूले स्वाद बेर के !

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