वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना तिरी तरह कोई तेग़-ए-निगह को आब तो दे दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है पियाला गर नहीं देता न दे शराब तो दे 'असद' ख़ुशी से मिरे हाथ पाँव फूल गए कहा जो उस ने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे ये कौन कहवे है आबाद कर हमें लेकिन कभी ज़माना मुराद-ए-दिल-ए-ख़राब तो दे

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