जी हाँ , लिख रहा हूँ
जी हाँ, लिख रहा हूँ ... बहुत कुछ ! बहोत बहोत !! ढेर ढेर सा लिख रहा हूँ ! मगर , आप उसे पढ़ नहीं पाओगे ... देख नहीं सकोगे उसे आप ! दरअसल बात यह है कि इन दिनों अपनी लिखावट आप भी मैं कहॉ पढ़ पाता हूँ नियोन-राड पर उभरती पंक्तियों की तरह वो अगले ही क्षण गुम हो जाती हैं चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस दो-चार सेकेंड तक ही टिकती है .... कभी-कभार ही अपनी इस लिखावट को कागज़ पर नोट कर पता हूँ स्पन्दनशील संवेदन की क्षण-भंगुर लड़ियाँ सहेजकर उन्हें और तक पहुँचाना ! बाप रे , कितना मुश्किल है ! आप तो 'फोर-फिगर' मासिक - वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे, मन-ही-मन तो हसोंगे ही, की भला यह भी कोई काम हुआ , की अनाप- शनाप ख़यालों की महीन लफ्फाजी ही करता चले कोई - यह भी कोई काम हुआ भला !

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