मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ ज़ोफ़ में ताना-ए-अग़्यार का शिकवा क्या है बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना क्या क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूँ

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