मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें
मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें हैं जम्अ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म में आहें किस दिल पे है अज़्म-ए-सफ़-ए-मिज़्गान-ए-ख़ुद-आरा आईने के पायाब से उतरी हैं सिपाहें दैर-ओ-हरम आईना-ए-तकरार-ए-तमन्ना वामांदगी-ए-शौक़ तराशे है पनाहें जूँ मर्दुमक-ए-चश्म से हों जम्अ' निगाहें ख़्वाबीदा ब-हैरत-कदा-ए-दाग़ हैं आहें फिर हल्क़ा-ए-काकुल में पड़ीं दीद की राहें जूँ दूद फ़राहम हुईं रौज़न में निगाहें पाया सर-ए-हर-ज़र्रा जिगर-गोशा-ए-वहशत हैं दाग़ से मामूर शक़ाइक़ की कुलाहें ये मतला 'असद' जौहर-ए-अफ़्सून-ए-सुख़न हो गर अर्ज़-ए-तपाक-ए-जिगर-ए-सोख़्ता चाहें हैरत-कश-ए-यक-जल्वा-ए-मअनी हैं निगाहें खींचूँ हूँ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म से आहें

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