हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है
हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है कि तार-ए-दामन ओ तार-ए-नज़र में फ़र्क़ मुश्किल है रफ़ू-ए-ज़ख्म से मतलब है लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न की समझियो मत कि पास-ए-दर्द से दीवाना ग़ाफ़िल है वो गुल जिस गुलसिताँ में जल्वा-फ़रमाई करे 'ग़ालिब' चटकना ग़ुंचा-ए-गुल का सदा-ए-ख़ंदा-ए-दिल है हुआ है माने-ए-आशिक़-नवाज़ी नाज़-ए-ख़ुद-बीनी तकल्लुफ़-बर-तरफ़ आईना-ए-तमईज़ हाएल है ब-सैल-ए-अश्क लख़्त-ए-दिल है दामन-गीर मिज़्गाँ का ग़रीक़-ए-बहर जूया-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-साहिल है बहा है याँ तक अश्कों में ग़ुबा-ए-कुल्फ़त-ए-ख़ातिर कि चश्म-ए-तर में हर इक पारा-ए-दिल पा-ए-दर-गिल है निकलती है तपिश में बिस्मिलों की बर्क़ की शोख़ी ग़रज़ अब तक ख़याल-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार क़ातिल है

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