दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं यानी हमारे जैब में इक तार भी नहीं दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके देखा तो हम में ताक़त-ए-दीदार भी नहीं मिलना तिरा अगर नहीं आसाँ तो सहल है दुश्वार तो यही है कि दुश्वार भी नहीं बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ ताक़त ब-क़दर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश सहरा में ऐ ख़ुदा कोई दीवार भी नहीं गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़ याँ दिल में ज़ोफ़ से हवस-ए-यार भी नहीं डर नाला-हा-ए-ज़ार से मेरे ख़ुदा को मान आख़िर नवा-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार भी नहीं दिल में है यार की सफ़-ए-मिज़्गाँ से रू-कशी हालाँकि ताक़त-ए-ख़लिश-ए-ख़ार भी नहीं इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं देखा 'असद' को ख़ल्वत-ओ-जल्वत में बार-हा दीवाना गर नहीं है तो हुश्यार भी नहीं

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