चिकने लम्बे केश
चिकने लम्बे केश काली चमकीली आँखें खिलते हुए फूल के जैसा रंग शरीर का फूलों ही जैसी सुगंध शरीर की समयों के अंतराल चीरती हुई अधीरता इच्छा की याद आती हैं ये सब बातें अधैर्य नहीं जागता मगर अब इन सबके याद आने पर न जागता है कोई पश्चाताप जीर्णता के जीतने का शरीर के इस या उस वसंत के बीतने का दुःख नहीं होता उलटे एक परिपूर्णता -सी मन में उतरती है जैसे मौसम के बीत जाने पर दुःख नहीं होता उस मौसम के फूलों का!

Read Next