असंदिग्ध एक उजाला
असंदिग्ध एक उजाला टूटा बिजली बन कर शिखर पर मेरी दृष्टि के और डर कर मैंने बंद कर ली अपनी आँखें जब खोली आँखें तो देखा कि देख नहीं पातीं मेरी आँखें अब कुछ भी सिवा उस असंदिग्ध उजाले के और दिखता है वह भी आँखों के आगे अँधेरा छा जाने पर अंधेरे में तैरने वाली चिन्गारियों की तरह असंदिग्ध यह उजाला जो केवल अब चिंनगारियों में दिख़ता है दिखा नहीं पाता कुछ भी!

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