चाँदनी से तरबतर
चांदनी से तरबतर वह रात वन के वृक्ष वृक्षों पर सटी बैठी हुई झंकारवन्ती झिल्लियाँ सब याद है फिर न उतना सुख न इतना दुख मिले फ़रियाद है

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