मेरे वृन्त पर
मेरे वृन्त पर एक फूल खिल रहा है उजाले की तरफ़ मुंह किये हुए। और उकस रहा है एक कांटा भी उसी की तरह पीकर मेरा रस मुंह उसका अँधेरे की तरफ़ है। फूल झर जाएगा मुंह किए -किए उजाले की तरफ़ काँटा वृन्त के सूखने पर भी वृन्त पर बना रहेगा

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