वादा-ए-वस्लत से दिल हो शाद क्या
वादा-ए-वस्लत से दिल हो शाद क्या तुम से दुश्मन की मुबारकबाद क्या कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी आशियाँ अपना हुआ बर्बाद क्या नाला-ए-पैहम से याँ फ़ुर्सत नहीं हज़रत-ए-नासेह करें इरशाद क्या हैं असीर उस के जो है अपना असीर हम न समझे सैद क्या सय्याद क्या शोख़-बाज़ारी थी शीरीं भी मगर वर्ना फ़र्क़-ए-ख़ुस्रव-ए-फ़रहाद क्या नश्शा-ए-उल्फ़त से भूले यार को सच है ऐसी बे-ख़ुदी में याद क्या नाला इक दम में उड़ा डाले धुएँ चर्ख़ क्या और चर्ख़ की बुनियाद क्या जब मुझे रंज-ए-दिल-आज़ारी न हो बेवफ़ा फिर हासिल-ए-बेदाद क्या पाँव तक पहुँची वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म सर्व को अब बाँधिए आज़ाद क्या क्या करूँ अल्लाह सब हैं बे-असर वलवला क्या नाला क्या फ़रियाद क्या इन नसीबों पर किया अख़्तर-शनास आसमाँ भी है सितम-ईजाद क्या रोज़-ए-महशर की तवक़्क़ो है अबस ऐसी बातों से हो ख़ातिर शाद क्या गर बहा-ए-ख़ून-ए-आशिक़ है विसाल इंतिक़ाम-ए-ज़हमत-ए-जल्लाद क्या बुत-कदा जन्नत है चलिए बे-हिरास लब पे 'मोमिन' हरचे बादा-बाद क्या

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