उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ बे-ताक़ती के ताने हैं उज़्र-ए-जफ़ा के साथ बहर-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ बे-पर्दा ग़ैर पास उसे बैठा न देखते उठ जाते काश हम भी जहाँ से हया के साथ वो लाला-रू गया न हो गुलगश्त-ए-बाग़ को कुछ रंग बू-ए-गुल के एवज़ है सबा के साथ उस की गली कहाँ ये तो कुछ बाग़-ए-ख़ुल्द है किस जाए मुझ को छोड़ गई मौत ला के साथ आती है बू-ए-दाग़-ए-शब-ए-तार हिज्र में सीना भी चाक हो न गया हो क़बा के साथ गुलबाँग किस का मशवरा-ए-क़त्ल हो गया कुछ आज बू-ए-ख़ूँ है वहाँ की हवा के साथ थे वअ'दे से फिर आने के ख़ुश ये ख़बर न थी है अपनी ज़िंदगानी उसी बेवफ़ा के साथ कूचे से अपने ग़ैर का मुँह है मिटा सके आशिक़ का सर लगा है तिरे नक़्श-ए-पा के साथ अल्लाह रे गुमरही बुत ओ बुत-ख़ाना छोड़ कर 'मोमिन' चला है काबे को इक पारसा के साथ

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