तासीर सब्र में न असर इज़्तिराब में
तासीर सब्र में न असर इज़्तिराब में बेचारगी से जान पड़ी किस अज़ाब में बे-नाला मुँह से झड़ते हैं बे-गिर्या आँख से अजज़ा-ए-दिल का हाल न पूछ इज़्तिराब में चर्ख़ ओ ज़मीं में तौबा का मिलता नहीं सुराग़ हंगामा-ए-बहार ओ हुजूम-ए-सहाब में ऐ ज़ोहरा-चेहरा दुश्मन-ए-मनहूस को न देख नाले बहेंगे ख़ून के इस फ़तह-याब में इतनी कुदूरत अश्क में हैराँ हूँ क्या कहूँ दरिया में है सराब कि दरिया सराब में फ़िक्र-ए-मआल से मय ओ शाहिद रहे अज़ीज़ पीरी में मौत याद थी पीरी शबाब में तुम निकले बहर-ए-सैर तो निकलेगा मेहर भी होवेगा इज्तिमा शब-ए-माहताब में डूबी हुजूम-ए-अश्क से कश्ती ज़मीन की माही को इज़्तिराब हुआ जोश-ए-आब में खोला जो दफ़्तर-ए-गिला अपना ज़ियाँ किया गुज़री शब-ए-विसाल सितम के हिसाब में ऐ हश्र जल्द कर तह-ओ-बाला जहान को यूँ कुछ न हो उम्मीद तो है इंक़िलाब में क़ातिल जफ़ा से बाज़ न आया वफ़ा से हम फ़ितराक में जो सर है तो जाँ है रिकाब में बाज़ीचा कर दिया सितम-ए-यार ओ जौर-ए-चर्ख़ तिफ़्ली से ग़लग़ला है मिरा शैख़ ओ शाब में 'मोमिन' ये आलम उस सनम-ए-जाँ-फ़ज़ा का है दिल लग गया जहान-ए-सरासर-ख़राब में

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