जैसा दिखता है
आसमान जैसा दिखता है वैसा नहीं है और न धरती जैसी दिखती है वैसी है ठीक नहीं कह सकता कोई वह कैसा है यह कैसी है मगर फिर भी अंधी आँखों बहरे कानों हमें सब कुछ देखना-सुनना पड़ता है ग़लत देखे–सुने में से बेकाम का ही सही कुछ चुनना पड़ता है!

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