बह नहीं रहे होंगे
बह नहीं रहे होंगे रेवा के किनारे-किनारे उन दिनों के हमारे शब्द दीपों की तरह पड़े तो होंगे मगर पहुँच कर वे अरब-सागर के किनारे पर कंकरों और शंखो और सीपों की तरह!

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