मैं क्या करूँगा
हवा वैसाख की राशि राशि पत्ते पेडो के नीचे के राशि राशि झरे बिखरे सूखे फूल लेकर चलेगी चल देगी मुझको तो यह भी मयस्सर नही है मैं क्या करूंगा वैसाख की दुपहिरया में झरिया खनाती हुयी कोई बेटी भी नही दिखेगी जब नदिया के तीर पर मैं क्या लेकर उडूँगा प्राणो में देय क्या भरूंगा मैं शब्दो के दोने में अकमर्ठ बुढापे सा दुबका रहँूगा क्या कोने में तन के मन के विस्तृत गगन के आेर छोर ढांकने की इच्छा मेरी आषाढ के मेघ की तरह नही तो क्या वैसाख जेठ की धूल की तरह भी प्ाूरी नही होगी राशि राशि झरे बिखरे सूखे फूल लेकर बहेगी हवा वैसाख की मैं क्या करूंगा।

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