महारथी
झूठ आज से नहीं अनन्त काल से रथ पर सवार है और सच चल रहा है पाँव-पाँव नदी पहाड़ काँटे और फूल और धूल और ऊबड़-खाबड़ रास्ते सब सच ने जाने हैं झूठ तो समान एक आसमान में उड़ता है और उतर जाता है जहाँ चाहता है क्रमश: बदली है झूठ ने सवारियाँ आज तो वह सुपरसॉनिक पर है और सच आज भी पाँव-पाँव चल रहा है इतना ही हो सकता है किसी-दिन कि देखें हम सच सुस्ता रहा है थोड़ी देर छाँव में और सुपरसॉनिक किसी झँझट में पड़कर जल रहा है

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