शुआ-ए-उम्मीद
सूरज ने दिया अपनी शुआओं को ये पैग़ाम दुनिया है अजब चीज़ कभी सुब्ह कभी शाम मुद्दत से तुम आवारा हो पहना-ए-फ़ज़ा में बढ़ती ही चली जाती है बे-मेहरी-ए-अय्याम ने रेत के ज़र्रों पे चमकने में है राहत ने मिस्ल-ए-सबा तौफ़-ए-गुल-ओ-लाला में आराम फिर मेरे तजल्ली-कदा-ए-दिल में समा जाओ छोड़ो चमनिस्तान ओ बयाबान ओ दर-ओ-बाम

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