उठो
बुरी बात है चुप मसान में बैठे-बैठे दुःख सोचना, दर्द सोचना ! शक्तिहीन कमज़ोर तुच्छ को हाज़िर नाज़िर रखकर सपने बुरे देखना ! टूटी हुई बीन को लिपटाकर छाती से राग उदासी के अलापना !   बुरी बात है ! उठो, पांव रक्खो रकाब पर जंगल-जंगल नद्दी-नाले कूद-फांद कर धरती रौंदो ! जैसे भादों की रातों में बिजली कौंधे, ऐसे कौंधो ।

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