एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए ये खंभे
किसी झाड़ से थोड़े नीचे , किसी झाड़ से लम्बे।
कल ऐसे चुपचाप खड़े थे जैसे बोल न जानें
किन्तु सबेरे आज बताया मुझको मेरी माँ ने -
इन्हें बोलने की तमीज है , सो भी इतना ज्यादा
नहीं मानती इनकी बोली पास-दूर की बाधा!
अभी शाम को इन्हीं तार के खंभों ने बतलाया
कल मामीजी की गोदी में नन्हा मुन्ना आया।
और रात को उठा , हुआ तब मुझको बड़ा अचंभा -
सिर्फ बोलता नहीं , गीत भी गाता है यह खंभा!