ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक मुश्किल है गुज़र इस में बे-नाला-ए-आतिशनाक नख़चीर-ए-मोहब्बत का क़िस्सा नहीं तूलानी लुत्फ़-ए-ख़लिश-ए-पैकाँ आसूदगी-ए-फ़ितराक खोया गया जो मतलब हफ़्ताद ओ दो मिल्लत में समझेगा न तू जब तक बे-रंग न हो इदराक इक शर-ए-मुसलमानी इक जज़्ब-ए-मुसलमानी है जज़्ब-ए-मुसलमानी सिर्र-ए-फ़लक-उल-अफ़्लाक ऐ रहरव-ए-फ़रज़ाना बे-जज़्ब-ए-मुसलमानी ने राह-ए-अमल पैदा ने शाख़-ए-यक़ीं नमनाक रमज़ीं हैं मोहब्बत की गुस्ताख़ी ओ बेबाकी हर शौक़ नहीं गुस्ताख़ हर जज़्ब नहीं बेबाक फ़ारिग़ तो न बैठेगा महशर में जुनूँ मेरा या अपना गरेबाँ चाक या दामन-ए-यज़्दाँ चाक

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