कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़
कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़ ख़ुदा का शुक्र सलामत रहा हरम का ग़िलाफ़ ये इत्तिफ़ाक़ मुबारक हो मोमिनों के लिए कि यक ज़बाँ हैं फ़क़ीहान-ए-शहर मेरे ख़िलाफ़ तड़प रहा है फ़लातूँ मियान-ए-ग़ैब ओ हुज़ूर अज़ल से अहल-ए-ख़िरद का मक़ाम है आराफ़ तिरे ज़मीर पे जब तक न हो नुज़ूल-ए-किताब गिरह-कुशा है न 'राज़ी' न साहिब-ए-कश्शाफ़ सुरूर ओ सोज़ में ना-पाएदार है वर्ना मय-ए-फ़रंग का तह-ए-जुरआ भी नहीं ना-साफ़

Read Next