हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक
हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक अगरचे मग़रबियों का जुनूँ भी था चालाक मय-ए-यक़ीं से ज़मीर-ए-हयात है पुर-सोज़ नसीब-ए-मदरसा या रब ये आब-ए-आतिश-नाक उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी के मुंतज़िर हैं तमाम ये कहकशाँ ये सितारे ये नील-गूँ अफ़्लाक यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक तू बे-बसर हो तो ये माना-ए-निगाह भी है वगरना आग है मोमिन जहाँ ख़स ओ ख़ाशाक ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह किसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक जहाँ तमाम है मीरास मर्द-ए-मोमिन की मिरे कलाम पे हुज्जत है नुक्ता-ए-लौलाक

Read Next