तराना-ए-मिल्ली
चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा तौहीद की अमानत सीनों में है हमारे आसाँ नहीं मिटाना नाम-ओ-निशाँ हमारा दुनिया के बुत-कदों में पहला वो घर ख़ुदा का हम इस के पासबाँ हैं वो पासबाँ हमारा तेग़ों के साए में हम पल कर जवाँ हुए हैं ख़ंजर हिलाल का है क़ौमी निशाँ हमारा मग़रिब की वादियों में गूँजी अज़ाँ हमारी थमता न था किसी से सैल-ए-रवाँ हमारा बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा ऐ गुलिस्तान-ए-उंदुलुस वो दिन हैं याद तुझ को था तेरी डालियों में जब आशियाँ हमारा ऐ मौज-ए-दजला तू भी पहचानती है हम को अब तक है तेरा दरिया अफ़्साना-ख़्वाँ हमारा ऐ अर्ज़-ए-पाक तेरी हुर्मत पे कट मरे हम है ख़ूँ तिरी रगों में अब तक रवाँ हमारा सालार-ए-कारवाँ है मीर-ए-हिजाज़ अपना इस नाम से है बाक़ी आराम-ए-जाँ हमारा 'इक़बाल' का तराना बाँग-ए-दरा है गोया होता है जादा-पैमा फिर कारवाँ हमारा

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