जावेद के नाम
दयार-ए-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर नया ज़माना नए सुब्ह ओ शाम पैदा कर ख़ुदा अगर दिल-ए-फ़ितरत-शनास दे तुझ को सुकूत-ए-लाला-ओ-गुल से कलाम पैदा कर उठा न शीशागरान-ए-फ़रंग के एहसाँ सिफ़ाल-ए-हिन्द से मीना ओ जाम पैदा कर मैं शाख़-ए-ताक हूँ मेरी ग़ज़ल है मेरा समर मिरे समर से मय-ए-लाला-फ़ाम पैदा कर मिरा तरीक़ अमीरी नहीं फ़क़ीरी है ख़ुदी न बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर

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