आराम से भाई ज़िन्दगी
आराम से भाई ज़िन्दगी ज़रा आराम से तेज़ी तुम्हारे प्यार की बर्दाशत नहीं होती अब इतना कसकर किया आलिंगन ज़रा ज़्यादा है जर्जर इस शरीर को आराम से भाई ज़िन्दगी ज़रा आराम से तुम्हारे साथ-साथ दौड़ता नहीं फिर सकता अब मैं ऊँची-नीची घाटियों पहाड़ियों तो क्या महल-अटारियों पर भी न रात-भर नौका विहार न खुलकर बात-भर हँसना बतिया सकता हूँ हौले-हल्के बिल्कुल ही पास बैठकर और तुम चाहो तो बहला सकती हो मुझे जब तक अँधेरा है तब तक सब्ज़ बाग दिखलाकर जो हो जाएँगे राख छूकर सवेरे की किरन सुबह हुए जाना है मुझे आराम से भाई ज़िन्दगी ज़रा आराम से ।

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