सन्नाटा
तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको, फिर चुपके चुपके धाम बता दूँ तुमको तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे धीमे मैं अपना कोई काम बता दूँ तुमको। कुछ लोग भ्रान्तिवश मुझे शान्ति कहते हैं, निस्तब्ध बताते हैं, कुछ चुप रहते हैं मैं शांत नहीं निस्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं। कभी कभी कुछ मुझमें चल जाता है, कभी कभी कुछ मुझमें जल जाता है जो चलता है, वह शायद है मेंढक हो, वह जुगनू है, जो तुमको छल जाता है। मैं सन्नाटा हूँ, फिर भी बोल रहा हूँ, मैं शान्त बहुत हूँ, फिर भी डोल रहा हूँ यह सर सर यह खड़ खड़ सब मेरी है है यह रहस्य मैं इसको खोल रहा हूँ। मैं सूने में रहता हूँ, ऐसा सूना, जहाँ घास उगा रहता है ऊना-ऊना और झाड़ कुछ इमली के, पीपल के अंधकार जिनसे होता है दूना। तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ खड़ा हूँ, तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ पड़ा हूँ मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ मैं ऐसी ही जगहों में पला, बढ़ा हूँ। हाँ, यहाँ किले की दीवारों के ऊपर, नीचे तलघर में या समतल पर, भू पर कुछ जन श्रुतियों का पहरा यहाँ लगा है, जो मुझे भयानक कर देती है छू कर। तुम डरो नहीं, डर वैसे कहाँ नहीं है, पर खास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है बस एक बात है, वह केवल ऐसी है, कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं। यहाँ बहुत दिन हुए एक थी रानी, इतिहास बताता उसकी नहीं कहानी वह किसी एक पागल पर जान दिये थी, थी उसकी केवल एक यही नादानी! यह घाट नदी का, अब जो टूट गया है, यह घाट नदी का, अब जो फूट गया है वह यहाँ बैठकर रोज रोज गाता था, अब यहाँ बैठना उसका छूट गया है। शाम हुए रानी खिड़की पर आती, थी पागल के गीतों को वह दुहराती तब पागल आता और बजाता बंसी, रानी उसकी बंसी पर छुप कर गाती। किसी एक दिन राजा ने यह देखा, खिंच गयी हृदय पर उसके दुख की रेखा यह भरा क्रोध में आया और रानी से, उसने माँगा इन सब साँझों का लेखा। रानी बोली पागल को जरा बुला दो, मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा, बंसी बजवा कर मुझको जरा सुला दो। वह राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था, ऐसे जवाब से उसका मेल नहीं था रानी ऐसे बोली थी, जैसे उसके इस बड़े किले में कोई जेल नहीं था। तुम जहाँ खड़े हो, यहीं कभी सूली थी, रानी की कोमल देह यहीं झूली थी हाँ, पागल की भी यहीं, यहीं रानी की, राजा हँस कर बोला, रानी भूली थी। किन्तु नहीं फिर राजा ने सुख जाना, हर जगह गूँजता था पागल का गाना बीच बीच में, राजा तुम भूले थे, रानी का हँसकर सुन पड़ता था ताना। तब और बरस बीते, राजा भी बीते, रह गये किले के कमरे कमरे रीते तब मैं आया, कुछ मेरे साथी आये, अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते। पर कभी कभी जब पागल आ जाता है, लाता है रानी को, या गा जाता है तब मेरे उल्लू, साँप और गिरगिट पर अनजान एक सकता-सा छा जाता है।

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