उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे रौशनी ख़त्म न कर आगे अंधेरा होगा प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

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