मेरा अपनापन
रातों दिन बरसों तक मैंने उसे भटकाया लौटा वह बार-बार पार करके मेहराबें समय की मगर खाली हाथ क्योंकि मैं उसे किसी लालच में दौड़ाता था दौड़ता था वह मेरे इशारे पर और जैसा का तैसा नहीं थका और मांदा लौट आता था यह कहने कि रहने दो मुझे अपने पास मैं हरा रहूंगा जैसे तुम्हारे पाँवों के नीचे की घास मैंने देख लिया है तुमसे दूर कहीं कुछ है ही नहीं हम दोनों मिलकर पा सकेंगे उसे यहीं जो कुछ पाने लायक है।

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