सुना है मैं ने
सुना है मैं ने! कई दिन से तुम परेशाँ हो किसी ख़याल में हर वक़्त खोई रहती हो गली में जाती हो जाते ही लौट आती हो कहीं की चीज़ कहीं रख के भूल जाती हो किचन में! रोज़ कोई प्याली तोड़ देती हो मसाला पीस कर सिल यूँही छोड़ देती हो नसीहतों से ख़फ़ा मश्वरों से उलझन सी कमर में दर्द की लहरें रगों में एैंठन सी यक़ीन जानो! बहुत दूर भी नहीं वो घड़ी हर इक फ़साने का उनवाँ बदल चुका होगा मिरे पलंग की चौड़ाई घट चुकी होगी तुम्हारे जिस्म का सूरज पिघल चुका होगा

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