अन्दाज़
अन्दाज़ लग जाता है कि घिरने वाले हैं बादल फटने वाला है आसमान ख़त्म हो जाने वाला है अस्तित्व सूर्य का इसी तरह सुनाई पड़ जाता है स्वर परिवर्तन के तूर्य का कि छँटने वाले हैं बादल साफ़ हो जाने वाला है फिर आसमान और गान फिर गूँजने वाले हैं पंछियों के और हमारे !

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