मशीन
मशीन चल रही हैं नीले पीले लाल लोहे की मशीनों में हज़ारों आहनी पुर्ज़े मुक़र्रर हरकतों के दाएरों में चलते फिरते हैं सहर से शाम तक पुर-शोर आवाज़ें उगलते हैं बड़ा छोटा हर इक पुर्ज़ा कसा है कील-पंचों से हज़ारों घूमते पुर्ज़ों को अपने पेट में डाले मशीनें सोचती हैं चीख़ती हैं जंग करती हैं मशीनें चल रही हैं

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