फ़क़त चंद लम्हे
बहुत देर है बस के आने में आओ कहीं पास की लॉन पर बैठ जाएँ चटख़्ता है मेरी भी रग रग में सूरज बहुत देर से तुम भी चुप चुप खड़ी हो न मैं तुम से वाक़िफ़ न तुम मुझ से वाक़िफ़ नई सारी बातें नए सारे क़िस्से चमकते हुए लफ़्ज़ चमकते लहजे फ़क़त चंद घड़ियाँ फ़क़त चंद लम्हे न मैं अपने दुख-दर्द की बात छेड़ूँ न तुम अपने घर की कहानी सुनाओ मैं मौसम बनूँ तुम फ़ज़ाएँ जगाओ

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