उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ मिरे गिलास में थोड़ी शराब दे जाओ बहुत से और भी घर हैं ख़ुदा की बस्ती में फ़क़ीर कब से खड़ा है जवाब दे जाओ मैं ज़र्द पत्तों पर शबनम सजा के लाया हूँ किसी ने मुझ से कहा था हिसाब दे जाओ अदब नहीं है ये अख़बार के तराशे हैं गए ज़मानों की कोई किताब दे जाओ फिर उस के बा'द नज़ारे नज़र को तरसेंगे वो जा रहा है ख़िज़ाँ के गुलाब दे जाओ मिरी नज़र में रहे डूबने का मंज़र भी ग़ुरूब होता हुआ आफ़्ताब दे जाओ हज़ार सफ़्हों का दीवान कौन पढ़ता है 'बशीर-बद्र' का कोई इंतिख़ाब दे जाओ

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