पुलिस-महिमा
पड़ा - पड़ा क्या कर रहा , रे मूरख नादान दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले झुक - झुक करें सलाम , खोमचे - ठेले वाले कहँ ‘ काका ' कवि , सब्ज़ी - मेवा और इमरती चरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यान मानव की तो क्या चले , डर जाये भगवान डर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसीं इँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसीं कहँ ‘ काका ', जिस समय करोगे धारण वर्दी ख़ुद आ जाये ऐंठ - अकड़ - सख़्ती - बेदर्दी शान - मान - व्यक्तित्व का करना चाहो विकास गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ ‘ काका ', सीखो रंग - ढंग पीने - खाने के ‘ रिश्वत लेना पाप ' लिखा बाहर थाने के

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