जम और जमाई
बड़ा भयंकर जीव है , इस जग में दामाद सास - ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद कर देता बरबाद , आप कुछ पियो न खाओ मेहनत करो , कमाओ , इसको देते जाओ कहॅं ‘ काका ' कविराय , सासरे पहुँची लाली भेजो प्रति त्यौहार , मिठाई भर- भर थाली लल्ला हो इनके यहाँ , देना पड़े दहेज लल्ली हो अपने यहाँ , तब भी कुछ तो भेज तब भी कुछ तो भेज , हमारे चाचा मरते रोने की एक्टिंग दिखा , कुछ लेकर टरते ‘ काका ' स्वर्ग प्रयाण करे , बिटिया की सासू चलो दक्षिणा देउ और टपकाओ आँसू जीवन भर देते रहो , भरे न इनका पेट जब मिल जायें कुँवर जी , तभी करो कुछ भेंट तभी करो कुछ भेंट , जँवाई घर हो शादी भेजो लड्डू , कपड़े, बर्तन, सोना - चाँदी कहॅं ‘ काका ', हो अपने यहाँ विवाह किसी का तब भी इनको देउ , करो मस्तक पर टीका कितना भी दे दीजिये , तृप्त न हो यह शख़्श तो फिर यह दामाद है अथवा लैटर बक्स ? अथवा लैटर बक्स , मुसीबत गले लगा ली नित्य डालते रहो , किंतु ख़ाली का ख़ाली कहँ ‘ काका ' कवि , ससुर नर्क में सीधा जाता मृत्यु - समय यदि दर्शन दे जाये जमाता और अंत में तथ्य यह कैसे जायें भूल आया हिंदू कोड बिल , इनको ही अनुकूल इनको ही अनुकूल , मार कानूनी घिस्सा छीन पिता की संपत्ति से , पुत्री का हिस्सा ‘ काका ' एक समान लगें , जम और जमाई फिर भी इनसे बचने की कुछ युक्ति न पाई

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