आधी रात में
आधी रात में मेरी कँपकँपी सात रजाइयों में भी न रुकी सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया सातों रजाइयाँ गीली बुखार एक सौ छह, एक सौ सात हर साँस पसीना-पसीना युग को पलटने में लगे लोग बुख़ार से नहीं मरते मृत्यु के कन्धों पर जानेवालों के लिए मृत्यु के बाद ज़िन्दगी का सफ़र शुरू होता है मेरे लिए जिस सूर्य की धूप वर्जित है मैं उसकी छाया से भी इनकार कर दूँगा मैं हर खाली सुराही तोड़ दूँगा मेरा ख़ून और पसीना मिट्टी में मिल गया है मैं मिट्टी में दब जाने पर भी उग आऊँगा

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