अँजुरी भर धूप
आँजुरी भर धूप-सा मुझे पी लो! कण-कण मुझे जी लो! जितना हुआ हूँ मैं आज तक किसी का भी - बादल नहाई घाटियों का, पगडंडी का, अलसाई शामों का, जिन्हें नहीं लेता कभी उन भूले नामों का, जिनको बहुत बेबसी में पुकारा है जिनके आगे मेरा सारा अहम्‌‌ हारा है, गजरे-सी बाँहों का रंग-रचे फूलों का बौराए सागर के ज्वार-धुले कूलों का, हरियाली छाहों का अपने घर जानेवाली प्यारी राहों का - जितना इन सबका हूँ उतना कुल मिलाकर भी थोड़ा पड़ेगा मैं जितना तुम्हारा हूँ जी लो मुझे कण-कण अँजुरी भर पी लो!

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