उदास तुम
तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास ! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खँडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो ! मुँह पर ढँक लेती हो आँचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल, या दिन-भर उड़कर थकी किरन, सो जाती हो पाँखें समेट, आँचल में अलस उदासी बन ! दो भूले-भटके सान्ध्य-विहग, पुतली में कर लेते निवास ! तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास ! खारे आँसू से धुले गाल रूखे हलके अधखुले बाल, बालों में अजब सुनहरापन, झरती ज्यों रेशम की किरनें, संझा की बदरी से छन-छन ! मिसरी के होठों पर सूखी किन अरमानों की विकल प्यास ! तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास ! भँवरों की पाँतें उतर-उतर कानों में झुककर गुनगुनकर हैं पूछ रहीं-‘क्या बात सखी ? उन्मन पलकों की कोरों में क्यों दबी ढँकी बरसात सखी ? चम्पई वक्ष को छूकर क्यों उड़ जाती केसर की उसाँस ? तुम कितनी सुन्दर लगती हो ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खँडहर के आसपास मदभरी चाँदनी जगती हो !

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