ढीठ चांदनी
आज-कल तमाम रात चांदनी जगाती है मुँह पर दे-दे छींटे अधखुले झरोखे से अन्दर आ जाती है दबे पाँव धोखे से माथा छू निंदिया उचटाती है बाहर ले जाती है घंटो बतियाती है ठंडी-ठंडी छत पर लिपट-लिपट जाती है विह्वल मदमाती है बावरिया बिना बात? आजकल तमाम रात चाँदनी जगाती है

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