सुपने में सांइ मिले
सुपने में सांइ मिले सोवत लिया लगाए आंख न खोलूं डरपता मत सपना है जाए सांइ मेरा बहुत गुण लिखे जो हृदय माहिं पियूं न पाणी डरपता मत वे धोय जाहिं नैना भीतर आव तू नैन झांप तोहे लेउं न मैं देखूं और को न तेही देखण देउं नैना अंतर आव तू ज्यौ हौं नैन झंपेउं ना हौं देखूं और कूँ ना तुम देखण देउं कबीर रेख सिंदूर की काजर दिया न जाइ नैनू रमैया रमि रह्या दूजा कहॉ समाइ मन परतीत न प्रेम रस ना इत तन में ढंग क्या जानै उस पीवसू कैसे रहसी रंग   अंखियां तो छाई परी पंथ निहारि निहारि जीहड़ियां छाला परया नाम पुकारि पुकारि बिरह कमन्डल कर लिये बैरागी दो नैन मांगे दरस मधुकरी छकै रहै दिन रैन सब रंग तांति रबाब तन बिरह बजावै नित और न कोइ सुनि सकै कै सांई के चित

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