सम्रथाई का अंग
जिसहि न कोई तिसहि तू, जिस तू तिस ब कोइ । दरिगह तेरी सांईयां , ना मरूम कोइ होइ ॥1॥ सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ । धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ ॥2॥ अबरन कौं का बरनिये, मोपै लख्या न जाइ । अपना बाना वाहिया, कहि कहि थाके माइ ॥3॥ झल बावैं झल दाहिनैं, झलहि माहिं व्यौहार । आगैं पीछैं झलमई, राखैं सिरजन हार ॥4॥ सांई मेरा बाणियां, सहजि करै ब्यौपार । बिन डांडी बिन पालड़ैं, तोले सब संसार ॥5॥ साईं सूं सब होत है, बंदै थैं कुछ नाहिं । राईं थैं परबत कषै, परबत राई माहिं ॥6॥

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