कथनी-करणी का अंग
जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल । पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल ॥1॥ पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद । सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥2॥ मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग । राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग ॥3॥ `कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ । बावन आषिर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाइ ॥4॥ पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोय । ऐकै आषिर पीव का, पढ़ै सो पंडित होइ ॥5॥ करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड । जानें-बूझै कुछ नहीं, यौंहीं आंधां रूंड ॥6॥

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