मँड़ये के चारन समधी दीन्हा
मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥ दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥ भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता। पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी, कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥

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