काल काल तत्काल है, बुरा न करिये कोय।
अन्बोवे लुनता नहीं, बोवे तुनता होय॥
या दुनिया में आय के, छाड़ि दे तू ऐंठ।
लेना होय सो लेइ ले, उठी जात है पैंठ॥
खाय पकाय लुटाय के, करि ले अपना काम।
चलती बिरिया रे नरा, संग न चले छदाम॥
सह ही में सत बाटई, रोटी में ते टूक।
कहै कबीर ता दास को, कबहुँ न आवै चूक॥
देह खेह होय जागती, कौन कहेगा देह।
निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह॥
धर्म किये धन ना घटे, नदी ना घट्टै नीर।
अपनी आँखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर॥
या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख हेत॥
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय॥
कहते को कहि जान दे, गुरु की सीख तू लेय।
साकट जन औ श्वान को, फिरि जवाब न देय॥
इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति।
कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति॥
बहते को मत बहन दो, कर गहि ऐचहु ठौर।
कहो सुन्यो मानौ नहीं, शब्द कहो दुइ और॥