व्यवहार की महिमा
कबीर गर्ब न कीजिये, इस जीवन की आस। टेसू फूला दिवस दस, खंखर भया पलास॥ कबीर गर्ब न कीजिये, इस जीवन कि आस। इस दिन तेरा छत्र सिर, देगा काल उखाड़॥ कबीर थोड़ा जीवना, माढ़ै बहुत मढ़ान। सबही ऊभा पन्थसिर, राव रंक सुल्तान॥ कबीर यह संसार है, जैसा सेमल फूल। दिन दस के व्येवहार में, झूठे रंग न भूले॥ कबीर खेत किसान का, मिरगन खाया झारि। खेत बिचारा क्या करे, धनी करे नहिं बारि॥ कबीर रस्सी पाँव में, कहँ सोवै सुख चैन। साँस नगारा कुंच का, है कोइ राखै फेरी॥ आज काल के बीच में, जंगल होगा वास। ऊपर ऊपर हल फिरै, ढोर चरेंगे घास॥ रात गँवाई सोयेकर, दिवस गँवाये खाये। हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥ ऊँचा महल चुनाइया, सुबरन कली दुलाय। वे मंदिर खाली पड़े रहै मसाना जाय॥ कहा चुनावै भेड़िया, चूना माटी लाय। मीच सुनेगी पापिनी, दौरी के लेगी आप॥

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